“शुभांशु शुक्ला: अंतरिक्ष में पहुंचने वाले दूसरे भारतीय बने, रचा इतिहास”

शुभांशु शुक्ला: अंतरिक्ष में भारत का सितारा

लखनऊ के बेटे और भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने 25 जून 2025 को अंतरिक्ष में कदम रखकर इतिहास रच दिया। वे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर पहुंचने वाले भारत के पहले नागरिक बन गए हैं। यह मिशन स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट के ज़रिए लॉन्च किया गया, जो अमेरिका के कैनेडी स्पेस सेंटर से रवाना हुआ था।

बचपन में जागा था उड़ान का सपना-

शुभांशु की यह उड़ान किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। बचपन में जब उन्होंने एक एयरशो देखा, तो विमान की तेज़ आवाज़ और ऊँचाई में उड़ान उन्हें भीतर तक रोमांचित कर गई। तभी से उनका सपना बना — एक दिन मैं भी उड़ूंगा, वो भी सबसे ऊपर।
लखनऊ में पले-बढ़े शुभांशु के इस सपने की नींव वहीं से रखी गई, और आगे चलकर उन्होंने इसे हकीकत में बदल दिया।

शिक्षा और प्रशिक्षण का सफर-

शुभांशु ने अपनी स्कूली पढ़ाई सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के द्वारा की है। इसके बाद वे भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु गये, जहां से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एमटेक की डिग्री हासिल की।
वर्ष 2019 में उन्हें ISRO के महत्वाकांक्षी मानव मिशन गगनयान के लिए चयनित किया गया। इसके तहत उन्हें रूस के यूरी गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में अंतरिक्ष यात्रा की पेशेवर ट्रेनिंग दी गई, जो दो वर्षों तक चली।
भारतीय वायुसेना में शानदार सेवाएं
भारतीय वायुसेना में रहते हुए शुभांशु ने सुखोई-30, मिग-29, जगुआर और डोर्नियर-228 जैसे उन्नत विमानों को उड़ाया है। उन्हें 2000 घंटे से अधिक का उड़ान अनुभव है, जो उन्हें एक बेहतरीन फाइटर पायलट और योग्य अंतरिक्ष यात्री बनाता है।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

शुभांशु का परिवार लखनऊ का ही रहने वाला है। उनके पिता शंभू दयाल सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं और माँ आशा शुक्ला गृहिणी हैं। वे अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उनकी पत्नी, जो बचपन की दोस्त भी हैं, पेशे से एक डेंटिस्ट हैं।
जब उन्होंने अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी, उस समय उनके माता-पिता उसी स्कूल में मौजूद थे, जहां से शुभांशु ने पढ़ाई की थी — एक ऐसा क्षण जो केवल गर्व ही नहीं, भावुकता से भी भरा था।

ऐतिहासिक अंतरिक्ष मिशन-

एक्सिओम स्पेस के इस वाणिज्यिक मिशन में शुभांशु समेत कुल चार अंतरिक्ष यात्री शामिल थे। स्पेसएक्स का फाल्कन-9 रॉकेट दोपहर 12 बजे रवाना हुआ और लगभग 28 घंटे की यात्रा के बाद, भारतीय समयानुसार शाम 4:30 बजे, सभी यात्री ISS पर पहुंचे।
यह मिशन केवल तकनीकी रूप से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से भी खास था — क्योंकि शुभांशु राकेश शर्मा के 41 साल बाद अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय बन गए।

मिशन का उद्देश्य और उपलब्धियां

अंतरिक्ष स्टेशन पर शुभांशु और उनकी टीम 14 दिन बिताएंगे। इस दौरान वे करीब 60 वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, जिनमें जीवन विज्ञान, माइक्रोग्रैविटी में सेल व्यवहार, अंतरिक्ष चिकित्सा और पर्यावरणीय अध्ययन जैसे विषय शामिल हैं।
इन प्रयोगों के ज़रिए अंतरिक्ष में मानव जीवन की संभावनाओं और स्वास्थ्य पर प्रभाव को समझने में मदद मिलेगी।

भारत का सम्मान

फरवरी 2024 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें “अंतरिक्ष यात्री विंग्स” से सम्मानित किया था। इस उपलब्धि ने भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान में नई ऊंचाई दी है।

मिशन से पहले शुभांशु का संदेश
रवाना होने से पहले शुभांशु ने एक भावुक संदेश साझा किया:
“हम जल्द ही इस ग्रह को अस्थायी रूप से छोड़ने जा रहे हैं। मैं इस मिशन से जुड़े सभी लोगों और अपने परिवार को दिल से धन्यवाद देता हूँ। यह सफर सिर्फ मेरा नहीं, करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों और सपनों का है।”

निष्कर्ष-
शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा सिर्फ एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरे देश के आत्मसम्मान और वैज्ञानिक प्रगति की झलक है। एक छोटे शहर के साधारण परिवार से उठकर, दुनिया की सबसे ऊंची मंजिल तक पहुंचना — यही असली भारत है।
उनकी कहानी यह साबित करती है कि अगर सपना सच्चा हो और मेहनत सच्ची हो, तो कोई भी ऊँचाई बहुत दूर नहीं होती।

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